**सिकुड्ता व्यक्तित्त्व**
drarunkumarshastri // एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त
**सिकुड्ता व्यक्तित्त्व**
जीवन भर मैने प्रसार वाद
की नीति का अनुसरण किया ,
शरीर से मन से आत्मा से
सामाजिक रुप से
आर्थिक रुप से भौतिक स्वरूप से
धरा पर व्योम में जल में
कहने को मेरा आकार कितना
अब देखिए ना कोई एक अकेला
आखिर कितना फैले गा
रुकना तो उसे होगा
हाँ आज नहीं तो कल
कल नहीं तो अगले कल
और इस पर भी तस्स्ली न हो तो
पूर्ण विराम पर
पूर्ण विराम के आगे
कोई सुनवाई नहीं
शहंशाह बादशाह या
इनके ऊपर जो भी हों इनके आका
मैं कौन एक त्रण एक बुलबुला
या फिर एक हवा का झोंका
फिर काहे का शोर काहे का फड्फडाना
किस बात का अहंकार किस को दिखाना
कृपया कोई तो मुझको बताना
इतना ज्ञान आते ही
मैने सिकुड़ना शुरु किया
कुछ सा प्रयास कुछ कुछ देखा देखी
और कुछ कुछ अन्तर ज्ञान
मूल भाव था सिक्कुड़ना बस
बोले तो सिक्कुड़ना
शरीर से मन से आत्मा से
सामाजिक रुप से
आर्थिक रुप से भौतिक स्वरूप से
धरा पर व्योम में जल में
कहने को मेरा आकार कितना
अब देखिए ना कोई एक अकेला
अब कितना सिक्कुड़ सकता है
जब आया था तो वजन था महज
१८०० ग्राम से ३००० ग्राम तक ही न
जब गया तो रह गया
सिर्फ 3-4 मुट्ठी भर
जो थी असली पहचान
इसी के लिए लड्ता था
ना, तु, जीवन भर-………
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