सिंहावलोकन
सिंहावलोकन
जब किसी छन्द में प्रत्येक चरण के अंत में आने वाले शब्द या शब्द समूह से अगले चरण का प्रारम्भ होता है और छन्द के प्रारम्भ में आने वाला शब्द या शब्द समूह उसके अंत में आता है तो इस प्रयोग को सिंहावलोकन कहते हैं। इससे छन्द में विशेष लालित्य उत्पन्न होता है। सिंहावलोकन का प्रयोग प्रायः सवैया और घनाक्षरी छन्दों में किया जाता है। कुछ रचनाकार सिंहावलोकन में छन्द के पहले और अंतिम शब्द या शब्द-समूह की समानता को अनिवार्य नहीं मानते हैं। यहाँ पर घनाक्षरी छन्द में सिंहावलोकन के उदाहरण प्रस्तुत हैं।
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रूप घनाक्षरी :
मार-काट हो रही है, सीधे सुजनों की आज,
दुर्जन निर्द्वंद मुक्त, रहे कर अत्याचार।
अत्याचार व्यभिचार, करते डराते लोग,
बोलने वाले को देते, घाट मौत के उतार।
तार-तार हो रही है, सीताओं की लाज आज,
साधुवेश में असाधु, छलते हैं बार-बार।
बार-बार मरते है, बार -बार जन्मते हैं,
गली-गली घर-घर, रावणों की भरमार।
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मनहर घनाक्षरी :
गायेंगे भितरघातियों की जो प्रशस्ति लोग,
देश में आतंकवादी कैसे मिट पायेंगे।
पायेंगे शरण यदि भेड़ों बीच भेड़िये तो
मेमने मरेंगे और मरते हीजायेंगे।
जायेंगे जहाँ भी वहीं करेंगे विश्वासघात,
ऐसे ही कृतघ्न नाव देश की डुबायेंगे।
देश की डुबायेंगे जो खुद ही खिवैया नाव
तो लबार माझी बेड़ा पार क्या लगायेंगे।
– आचार्य ओम नीरव 8299034545
(मेरी कृति ‘छन्द विज्ञान’ से)