*”सिंदूर”*
“सिंदूर”
हाथों में मेहंदी सजाई माथे पे लाल बेंदी लगाई।
सोलह श्रृंगार हरे मंडप में सदा सुहागन वरदान है पाई।
विवाह मंडप में वधू वेदी पे सज धज कर आई।
वर ने सात फेरे सात वचनों से वधु को माँग में सिंदूर लगा रीत निभाई।
सात जन्मों का बंधन जुड़ा रीति रिवाज रस्मों से सुखद घड़ी आई।
जीवन संगिनी संग सुनहरे पलों संपूर्ण जीवन सुखदाई।
प्रेम प्रतीक चिन्ह नारी की पहचान चुटकी भर सिंदूर शोभा बढ़ाई।
लाल सुर्ख जोड़े में सजी दुल्हन दूल्हे संग ससुराल चली आई।
बाबुल का आँगन छुटा रिश्ते नाते छोड़ चली आई
नई नवेली दुल्हन बनी प्रियतम की अर्धागिनी बन आई।
अजब आस लगाए विश्वास की डोरी संग खींची चली आई।
व्रत त्यौहार पूजा पाठ में सोलह श्रृंगार कुंकुम से माँग सजाई।
सुहागन बन जोड़े में अखंड सौभाग्य वरदान है पाई।
भारतीय संस्कृति नारी की पहचान सौभाग्य शाली कहलाई।
पति पत्नी का रिश्ता गठबंधन जुड़ा चुटकी भर सिंदूर चेहरे पे रौनक ले आई।
अंतिम सांसों तक चुटकी भर सिंदूर मांग पे सजा सदा सुहागन कहलाई।
शशिकला व्यास✍️
स्वरचित मौलिक रचना