सिंदूर की एक चुटकी
सिंदूर की एक चुटकी ने,
रंग दिया मुझे,
सिर्फ तन ही नहीं
मन भी रंग दिया,
बांध कर सात वचनो में
मुझे बाँध दिया सम्पूर्ण,
नख से लेकर शिखर तक
पहना दी गई है बेड़िया
शृंगार रूपी आभूषणों की
सुसज्जित कर तन को,
कोरा कर दिया गया मेरा मन
फिर की गई एक नाकाम सी कोशिश
उन्मुक्त विचारो को संकुचित करने की
आकाश छूने वाले मन रूपी घोड़े को,
परम्पराओ के अस्तबल में रोकने की
कशमकश में है मन
अब उड़ेगा या रहेगा बंद पिंजरे में,
मिलेगा मन को मन का साथी
तोता मैना बनकर छुएंगे गगन
या नोंच लेगा एक मन
दूजे मन के पंख
रह बिन आत्मा का शरीर बनकर
लाल रंग की लालिमा में
हृदय के लहू को छिपाये
सौंदर्य, सौम्यता और संस्कारो का पर्याय बनकर !!
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डी के निवातिया