सिंचित मन
जब सब रूठ जाएंगे,
जब अपने छूट जाएंगे,
जब सपनें टूट जाएंगे,
जब नैन कटीरें फूट जाएंगे,
जब खोने को कुछ न होगा,
जब पाने को सबकुछ होगा,
बन जाना तू यार खुद का,
सामने तू और तेरा दर्पण होगा,
जीत जाएगा तू हारी बाज़ी भी,
जब आत्म मन से सिंचित समर्पण होगा,
आ जाएंगे छोड़कर जाने वाले भी,
तरसेंगे सब तेरे साथ को,
तू ही सबकें साथ हर पल हर क्षण होगा।
© अभिषेक पाण्डेय अभि