साहिल के आस-पास
साहिल के आस पास लिये जा रहा मुझे
तूफान जो तबाह किये जा रहा मुझे
खुद आसमां पे हो के भी वो चांद, देखिए
हर रात नये ख़्वाब दिये जा रहा मुझे
मैं रोज़ चाक-चाक सरे आम हो रहा
ये कौन बार-बार सिये जा रहा मुझे
जिससे न राब्ता कोई कायम हुआ कभी
वो शख़्स ज़िन्दगी सा जिये जा रहा मुझे
ले कर ‘असीम’ हाथ में वो जाम आज फिर
आँखों से बेहिसाब पिये जा रहा मुझे
© शैलेन्द्र ‘असीम’