#साहित्य_में_नारी_की_भूमिका
साहित्य में नारी की भूमिका
हर क्षेत्र में नारी की अहम भूमिका रही है । चाहे वो कोई भी क्षेत्र हो । यदि साहित्य की बात करें तो नारी साहित्य से पहले भी जुड़ी थी, आज भी जुड़ी है । महादेवी वर्मा जी, सरोजनी नायडू जी आदि कई लेखिका हैं, जिन्हें हम पढते आ रहे हैं । वैसे ये भी उतना ही सच है कि एक नारी के लिए साहित्य में पैर जमाना उतना आसान भी नहीं रहा है । कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता रहा है । अक्सर नारी हर बात को बेबाक लिखने से हिचकती है ।
जहाँ तक साहित्य की बात करें तो आज साहित्य में भी नारी बहुत अधिक रुचि ले रही हैं या यूं कहें कि बढ़चढ़कर हिस्सा ले रही है । जो एक बहुत ही अच्छी बात है ।
नारी का साहित्य की ओर रुझान से साहित्य में हर विषय की ओर ध्यान आकर्षित करता है । चाहे वह पारिवारिक,सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक या राजनीतिक विषय हो, क्योंकि नारी हर क्षेत्र से जुड़ी है और हर विषय का ज्ञान रखती है । सबसे अहम बात है कि नारी की समस्या को नारी से अधिक कौन समझ सकता है ? इसलिए साहित्य में नारी की समस्याओं को प्रकाश में लाना और उसके समाधान का जिक्र भी नारी करने लगी है ।
आजकल हर कार्य जहाँ ऑनलाइन हो रहा है तो साहित्य भी इससे अछूता नहीं है । इसका सकारात्मक परिणाम ये हुआ है कि एक गृहिणी भी आसानी से साहित्य से जुड़ पा रही है । वैसे उसके लिए अभी भी उतना आसान नहीं है । लेकिन फिर भी अपने परिवार की जिम्मेदारी को संभालते हुए , वह साहित्य के लिए समय निकाल ही लेती है । आजकल नारी हर समस्या को बेबाक लिखने भी लगी है । ये उसमें एक बहुत बड़ा परिवर्तन ही कह सकते हैं ।
वैसे यदि देखा जाए तो ये पुरुष समाज नारी के लेखन से ऊपर पुरुष के लेखन को रखने से आज भी बाज नहीं आते हैं । हाँ ये अलग बात है कि सभी के लिए यह कहना सही नहीं है।
आज नारी साहित्य की सभी विधाओं में लेखन कार्य कर रही है । उसे साहित्य के क्षेत्र में किसी कांधे की जरूरत नहीं है । वह स्वयं में संपूर्ण है।
बस जरूरत है तो वक्त निकालने की और बेबाक होने की । साथ ही साथ एक नारी को दूसरी नारी को सम्मान देना भी बहुत जरूरी है ।
–पूनम झा ‘प्रथमा’
जयपुर, राजस्थान