साहित्य का समाज पर प्रभाव
समाज को यदि नया बनाना है तो हमें इसकी मूलभूत इकाई मनुष्य के मस्तिष्क को नये सिरे से ढालना होगा। जैसे विचार होते हैं वैसे कर्म व्यक्ति करता है और विचारों का रूझान किधर चल रहा है यह समाज का वातावरण देखकर समझा जा सकता है। समाज पर साहित्य का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। साहित्य समाज को प्रगति पथ पर ले जाने का मार्ग प्रशस्त करती है, साहित्य समाज को नई दिशा -धारा देने का ताकत रखती है। साहित्य का सही स्वरूप आज समाज की आवश्यकता बन गयी है साहित्य के माध्यम से लोगों की विचारधारा व जीवनशैली दोनों बदल सकती है। हिटलर ने इसी माध्यम से अपने अनुकूल वातावरण तैयार कर नाजीवाद के बीज बोए, लोकमान्य तिलक का मराठा केसरी भी इसका उदाहरण है ।सही जीवन का शिक्षण साहित्य के माध्यम से दिया जा सकता है। लेकिन यदि पुस्तक प्रकाशन सोद्देश्य न हो, दिशाहीन हो तो वह लोकरंजन को कुत्सित दिशा में भी मोड़ सकता है इसलिए ऐसे प्रकाशन पर रोकथाम की व्यवस्था होनी चाहिए जो विनोद के नाम पर कामुकता भड़काते हैं।
।।रूचि दूबे।।