साहित्य का वजूद
साहित्य का वजूद उसके होने या न होने से नहीं है उसे तो बस जीया जाता है
कभी किसी युग के दौरान या कभी किसी अंतराल के बाद
कभी महज़ किन्हीं लफ़्ज़ों में तो कहीं किन्हीं बनावट में
साहित्य का निर्माण साहित्य खुद करता है
उसमें आने वाले हर शख्स की अपनी पहचान होती है
कभी कभी शब्दों को लिख कर जाहिर करना ही
उसके एक लम्बे जीवंत का आधार होता है|
~ निशब्द