साहित्य का मान बढ़ाएं !
साहित्य का मान बढ़ाएं !
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लोग रचना की हर पंक्ति
पढ़ते तक नहीं !
कौन सा शब्द सही और
कौन सा है गलत, यह
देखते तक नहीं !
बिना कुछ सोचे-समझे ही
किसी भी रचना को झट से
बना देते वो सही !
साहित्यिक गतिविधियों की
एक गलत सी परंपरा
पनपने देते हैं वही !
कभी, कोई भी ऐसी प्रवृत्ति
सर्वथा उचित नहीं !!
साहित्य के भविष्य के लिए
ऐसी गलत परंपरा ठीक नहीं !
रचना के शब्द बिन पढ़े ही
लाइक, कमेंट कर राय देना
किसी भी कोण से उचित नहीं !
बस, अपने निजी हितों को ही
ध्यान में रखकर ऐसा कुछ करना
स्वस्थ परंपरा का निर्वाह नहीं !
ऐसी इजूल-फ़िज़ूल सी बातें
साहित्य का ह्रास ही कर रही !!
जब कोई रचना आती है पटल पे !
तो आप अपने कीमती वक्त में से
कुछ शांत पल निकालकर ,
नीरवता की छाॅंव में जाकर ,
मन-मस्तिष्क में गति लाकर ,
हर शब्द के भावार्थ में जाकर ,
छुपे हुए भावों में थोड़ा डूबकर ,
छलकते रसों का आस्वादन कर ,
काव्य-विधा संबंधी नियमों का….
खूबसूरती से अनुपालन कर ही ,
रचना पे अपना कोई मंतव्य डालें !
किसी अन्य कारण से आवेश में आकर ,
ऐसा वैसा कुछ भी नहीं कर डालें !!
क्योंकि यह सिर्फ़ हम सबका ही प्रश्न नहीं !
यह तो साहित्य की प्रगति का सवाल है !
साहित्यिक धर्म के निर्वहन का सवाल है !
धर्म – विरूद्ध किसी नीति के संचालन से
साहित्य का सतत् विकास अवरूद्ध होता !
साहित्य जगत की धारा का प्रतिकूलन होता !!
साहित्य सदैव एक मानक पर खड़ा उतरे !
इसमें ज़रा भी अस्वच्छता की बू ना आए !
यह नित नई ऊॅंचाइयों पे स्थापित होता जाए !
इसकी हर विधा विश्व में मिसाल बनती जाए !!
इसके लिए हम सब भी कुछ पहल करते जाएं ,
नित नई-नई सार्थक रचना का सृजन करते जाएं ,
किसी और की रचना पर भी कुछ समय बिताएं ,
रचना के सार समझकर ही अपने कदम बढ़ाएं ,
पाठक बनकर भी रचनाकार का मनोबल बढ़ाएं ,
सार्थक समालोचना कर साहित्य का मान बढ़ाएं !
साहित्य के क्षेत्र में अपना भी कुछ दायित्व निभाएं !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 25 सितंबर, 2021.
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