साहित्य और सावन
कजरारी काली घटाएं… उमड़ते घुमड़ते बादल…. रिमझिम बुंदियां…..
भीना भीना मौसम…..
सावन शब्द ही अपने आप में बड़ा मनभावन है। मन का सम्बन्ध भावों से और भाव तो साहित्यकार का प्राण है।
हिन्दी भाषा के साहित्यकारों ने श्रावण मास को एक ओर तो पावन मास के रूप में चित्रित किया वहीं दूसरी ओर प्रेम प्रीति के सौन्दर्य से सराबोर
प्रेम व विरह के विरोधाभास लिए उजाले अंधेरों की अद्भुत
शब्द लड़ियां पिरो कर सुन्दर सृजन मालाएँ सजाई हैं।
हमारे साहित्यकारों ने सावन को अभूतपूर्व रूप देकर उसका महिमा मंडन अति काव्य चातुर्य का परिचय दिया है।
यह खुशनुमा मौसम साहित्यकारों व कवियों की कलम को दीवाना बना देता है। साहित्य तो मानों इस ऋतु का सबसे बड़ा गवाह है जिसने शब्दों के माध्यम से मौसम के मिजाज को जन जन में व्याप्त किया है, सरोबार किया है।
हिन्दी साहित्य का कोई भी युग ले लीजिए
चाहे वह तुलसीदास मीरा, , कबीर, सूरदास , जायसी आदि कवियों का मध्ययुग हो जिन्होंने पावस ऋतु का सुंदर और सरस चित्रण किया है या आधुनिक हिन्दी साहित्य के जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पन्त , सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, या महादेवी वर्मा जैसे छायावादी कवि श्रावण ऋतु या रिमझिम बारिश की फुहारों में न भीगे हों।
महादेवी वर्मा बोलती हैं-
“नव मेघों को रोता था
जब चातक का बालक मन,
इन आँखों में करुणा के
घिर घिर आते थे सावन”
सुमित्रानंदन पंत के सावन को देखिए-
“ढम ढम ढम ढम ढम ढम
बादल ने फिर ढोल बजाए।
छम छम छम छम छम छम
बूँदों ने घुंघरू छनकाए।”
रामधारी सिंह दिनकर वैसे वीर रस के कवि के रूप में में विख्यात थे। वे भी सावन की छटा से न बच सके-
“जगती में सावन आया है,
मायाविनि! सपने धो ले..”
इनसे आगे बढ़ें तो दृष्टिगत होता है कि वर्तमान समय के सुप्रसिद्ध व नामचीन लेखक व कवि भी सावन की ठंडी ठंडी बुंदियों की बौछारों से बचने न पाए हैं।
हरिवंश राय बच्चन की रचना –
“यह पावस की सांझ रंगीली
आज घिरे हैं बादल, साथी।”
तो गुलज़ार साहब फरमाया रहे हैं –
“बारिश आती है तो मेरे शहर को कुछ हो जाता है”
गोपालदास नीरज कहते हैं – “यदि मैं होता घन सावन का
पिया पिया कह मुझको भी पपिहरी बुलाती कोई,”
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सावन ऋतु सदियों से कवियों व रचनाकारों का एक स्वर में सर्व प्रिय विषय रहा है और भविष्य में भी रहेगा।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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