साहित्य : “एक दर्पण”
मनुष्य जब जब शीशे के सामने जाता है
अपनी शक्ल को उसमें निहार कर चेहरे को निखारता है ।
जहां कहीं उसे लगता है कि यहां धूल मिट्टी लगी है ,उसे पोछता है।
साहित्य क्या है? यह भी तो समाज के लिए आईने का ही काम करता है।
साहित्य किसी ने गढ़ा है
तो किसी ने पढ़ा है
तभी तो यह समाज आगे बढ़ा है
साहित्य की प्रत्येक विधा समाज पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव छोड़ती है।
कविता साहित्य को ही यदि हम उदाहरण स्वरूप देखें तो हम पाते हैं कि नवरस रूपी रत्न कहीं ना कहीं हम से जुड़े हैं
कविताएं कभी क्रांति लाती है कभी हंसाती है रुलाती है मिलती है तो कभी विरह की आग जलाती है।
कहानी रिश्तो को जोड़ती है
तो जीवनी प्रेरणा देती है
रेखाचित्र संस्मरण नाटक उपन्यास सहित सभी विधाएं समाज में कुछ न कुछ परोसती व पोसती है।
साहित्यकार जब सृजन की वेदी पर बैठता है उसके सामने समाज के जन-जन आहुति कर्ता के रूप में उपस्थित होकर उसकी साधना तपस्या व हवन को पूर्णाहुतिदेते हैं
साहित्य समाज निर्माण व्यक्ति निर्माण के साथ राष्ट्र निर्माण में अपना अमूल्य योगदान देता है ।
जिस राष्ट्र का साहित्य जितना गरिमामयहोगा उस राष्ट्र के जन-जन का चरित्र भी उतना ही उत्कृष्ट कोटि का होगा ।
युग परिवर्तन के साथ साहित्य में भी परिवर्तन हुआ है और होना भी चाहिए आज साहित्य रूपी दर्पण की नितांत आवश्यकता है ।आज की युवा पीढ़ी साहित्य से दूर और पश्चिमी सभ्यता के पास जा रही है ।
यदि साहित्यकारों ने समाज को दिशा नहीं तो आने वाली पीढ़ियां हमारी परंपरा संस्कृति को जान नहीं पाएगी जो कि साहित्य के साथ समाज के लिए ठीक नहीं होगा ।
आओ हम प्रयास करें ।
नव सृजन के भाव भरे।
साहित्य संस्कृतियों का देश हमारा ।
फिर से विश्व पटल पर
अग्रिम पंक्ति में खड़ा करें।
“राजेश व्यास अनुनय”