साहित्यिक चोरों को समर्पित-चोरी करना सीख रहे हैं।
चोरी करना सीख रहे हैं- साहित्यिक चोरों को समर्पित।
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1.
शायर होना सीख रहे हैं।
चोरी करना सीख रहे हैं।
शर्म नहीं है, मुँह काला हो,
जीवित मरना सीख रहे हैं।
2.
इसका मिसरा उसका सानी।
गढ़़ देते इक नयी कहानी।
सोच रहे दुनियाँ क्या जाने।
पकी पकाई खीर है खानी।
3.
खुश पाकर झूंठी वाह वाही।
लज्जा शर्म तुम्हें न आयी।
जूते अंडे सड़े टमाटर,
सिर पर आ सकते हैं भाई।
4.
पकड़़ गये उस दिन क्या होगा।
उससे पूछो जिसने भोगा।
कोर्ट कचहरी पुलिस अदालत,
चक्कर रोज लगाना होगा।
5.
झूठ के पांव नहीं होते हैं।
दुनियाँ में रुसवा होते हैं।
हाथ जोड़़ माफी मांगोगे,
पछिताओगे किए न होते।
6.
चोर जियादा कुछ हैं चोरनी।
सज के निकलें जैसे मोरनी।
माँ वाणी से तुम भी माँगो,
कलम उठा बन शेर शेरनी।
7.
खुद अपनी पहचान बनाओ।
सिर ऊँचा हो इज्ज़त पाओ।
नाम करो माँ बाप का ऊँचा,
लोगों के दिल में बस जाओ।
…….✍️ प्रेमी