*साहित्यिक कर्मठता के प्रतीक स्वर्गीय श्री महेश राही*
साहित्यिक कर्मठता के प्रतीक स्वर्गीय श्री महेश राही
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श्री महेश राही में अद्भुत ऊर्जा थी। कार्यक्रमों के आयोजन में वह अग्रणी रहते थे। जितना लिखना, उससे ज्यादा लेखकीय सम्मेलनों में भागीदारी करना उन्हें प्रिय था। प्रगतिशील लेखक संघ में उन्होंने काफी काम किया था। उसके आयोजनों में वह देश के अलग-अलग भागों में अपनी सहभागिता दर्ज करने के लिए जाते थे।
श्री महेश राही का साहित्यिक सफर और सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक का प्रकाशन दोनों एक साथ चला। शुरुआत के वर्षों से ही एक लेखक के रूप में श्री महेश राही की सहकारी युग के साथ सहभागिता रही। दोनों सहयात्री थे। महेंद्र जी की आयु कुछ ज्यादा थी, लेकिन दोनों में मित्रता का भाव था। महेश राही जी का पहला उपन्यास ‘डोलती नैया’ संभवत साठ के दशक में सहकारी युग साप्ताहिक में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुआ। इसमें श्रृंगार की प्रधानता थी। उस समय पुस्तक रूप में यह उपन्यास प्रकाशित होने से चूक गया। फिर कई दशक बाद जब महेश राही जी ने एक उपन्यास के रूप में इसे प्रकाशित करने की दृष्टि से दोबारा गौर किया तो उन्हें इस पर काफी काम करने की जरूरत महसूस हुई। काम वहीं छूट गया।
जीवन के आखिरी दशक में उन्होंने ‘तपस’ नामक उपन्यास लिखा और उसे पुस्तक रूप में प्रकाशित कराया। इसमें उनकी वैचारिक प्रौढ़ता की छाप देखने में आती है। लंबे समय तक समाज में काम करने के अपने अनुभवों को देखते हुए महेश राही जी ने आर्य समाज की विचारधारा को सर्वोपरि माना और महर्षि दयानंद की जाति भेद से रहित समाज निर्माण की शिक्षाओं को विभिन्न प्रसंगों और संवादों के रूप में तपस उपन्यास में शामिल किया। उनकी सामाजिक चेतना का ‘तपस’ उपन्यास एक प्रकार से चरमोत्कर्ष कहा जा सकता है।
उपन्यास लेखन के साथ-साथ कहानी-लेखन की दिशा में भी उनका योगदान सराहनीय रहा। ‘कारगिल के फूल’ उनका बहुचर्चित कहानी संग्रह था। इसमें देशभक्ति के विचारों को प्रमुखता दी गई है।
कहानी लिखने के साथ-साथ कहानी पढ़ने की कला में भी महेश राही जी ने प्रयोग किए हैं। अपने निवास पर प्रसिद्ध कथाकार श्री काशीनाथ सिंह को उन्होंने आमंत्रित करके चुने हुए साहित्यकारों के मध्य अपनी एक कहानी पढ़ कर सुनाई थी। उस पर काफी चर्चा भी हुई। सब ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए थे।
साहित्यकारों को अपने निवास पर आमंत्रित करके साहित्य-लाभ प्राप्त करने की प्रवृत्ति उनमें प्रबल थी। 1986 में जब श्री विष्णु प्रभाकर रामपुर आए तो उनके निवास पर भी गए। समय-समय पर विभिन्न साहित्यकारों के साथ उन्होंने आत्मीय संबंध बनाए। कहानीकार कुमार संभव उनके अभिनव मित्र थे। परिवेश पत्रिका का कुमार संभव अंक आयोजित करने में संपादक मूलचंद गौतम के साथ उनका भी भारी सहयोग था।
रामपुर में सुप्रसिद्ध उपन्यास कार प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंहल के निवास पर उनकी प्रतिदिन साहित्यिक-वैचारिक गोष्ठी होती थी। उसमें डॉक्टर ऋषि कुमार चतुर्वेदी जी भी पधारते थे। बहुधा भोलानाथ गुप्त जी भी आ जाते थे। एक-दो अन्य लोग भी आते थे। यह साहित्यिक गतिविधि से कहीं अधिक आत्मीय भावों को प्रगाढ़ बनाने की उनकी प्रवृत्ति थी, जो प्रकट होती थी।
महेश राही जी सबसे मृदुतापूर्ण संबंध बनाने में निपुण थे। संबंध बनाकर उन्हें निभाने की कला भी उन्हें आती थी। मेरा उनसे 1983 से लगभग तीन दशक का निकट संपर्क रहा वह कड़वी बात कहने से परहेज करते थे। सामंजस्य बिठाना उनके जीवन जीने की कला थी। उन्हें शत-शत प्रणाम!
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राही धन्य महेश जी, हिंदी के सिरमौर (कुंडलिया)
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राही धन्य महेश जी, हिंदी के सिरमौर
नगर रामपुर में नहीं, दिखता उन-सा और
दिखता उन-सा और, उच्च आयोजन करते
कलमकार के साथ, कलम लेकर पग धरते
कहते रवि कविराय, सदा समरसता चाही
उपन्यास अति श्रेष्ठ, ‘तपस’ सत्पथ का राही
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451