#साहस- पदपादाकुलक छंद
#पदपादाकुलक छंद
पदपादाकुलक एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। चरण के आदि में द्विकल अनिवार्य होता है और त्रिकल वर्जित होता है। पहले द्विकल के बाद यदि त्रिकल आता है तो उसके बाद एक और त्रिकल आना चाहिए, इस छंद में क्रमागत दो-दो चरण तुकान्त होते हैं।
#साहस
डर से नहीं काम हो मन से,
शिकवा फिर कैसा जीवन से।
चाहत से हिम्मत मिलती है,
हिम्मत से मुश्क़िल ढ़लती है।
सबको अपना मीत बनाओ,
परहित के तुम गीत सजाओ।
जैसी होती सोच हमारी,
वैसी खिलती जीवन क्यारी।
जीवन हरपल हँसके जीना,
विष को अमृत बनाकर पीना।
रब की प्रतिपल रहे ख़ुमारी,
मिट जाएगी हर बीमारी।
नयनों में नूतन जोश रहे,
संकट में भी निज होश रहे।
हर आफ़त नया सिखाती है,
अनुभव को और बढ़ाती है।
रब मानव छला गया है हर,
बच पाया क्या राम यहाँ पर?
गतिमान रहो हारेगा छल,
भूलो मत पर अपना तुम बल।
संभलो जागो अटल अडिग बन,
भूलो मत हो मानव चेतन।
ठोकर खाकर जो उठ जाता,
इतिहास नया वह रच पाता।
जीवन कविता सम भाव लिए,
जो पढ़ता खिलता चाव लिए।
रुचि हो चलने की अभिलाषा,
वह लिखता है नव परिभाषा।
दृढ़ता से मन ने जो ठाना,
हासिल करके ही वह माना।
तूफ़ानों को भी हरा दिया,
साहस जिसने जो ज़रा किया।
बादल सबकी प्यास बुझाए,
धरती सबकी भूख मिटाए।
दें लकड़ी फल छाया जीवन,
सीखो वृक्षों से अपनापन।
मानव त्याग भक्ति गुण धारो,
मानव प्रेम शक्ति गुण वारो।
तुम श्रेष्ठ तभी कहलाओगे,
जब मानवता दिखलाओगे।
#आर.एस. ‘प्रीतम’