……साहस अभाव…..
साहस अभाव में सुजनों के , दुष्टों का साहस पलता है ।
हों असुर अधर्मी धरनी पर , उनका दुःशासन छलता है ।।
आदर्श धर्म में बिंधकर हम
क्यों दानवता को झेल रहे ?
आतंक व्याप्त कर रक्त-पात
वे मानवता से खेल रहे
धर छद्म रूप भर अहंकार , निर्मम निर्दयी किलकता है ।
क्यों चीख रहे कर त्राहिमाम
तुम स्वयं नहीं कुछ कर पाये?
बन मूक बधिर क्या सोच रहे?
वह कृष्ण पुनः भू पर आये
अपमानित होकर बैठे हो , क्यों भुजबल नहीं मचलता है ?
जीवित रखनी यदि मानवता
हाथों में शस्त्र उठा लो तुम
प्रतिकार अग्नि की ज्वाला में
दानवता सहज जला दो तुम
जब एकक्षत्र बलवान बनें , तब मानव-दीपक जलता है ।
साहस अभाव में ……………।