साहब कांसीराम
साहब कांसीराम
साहब कांसीराम थे, बहुजन की आवाज।
नई सोच दे कर किया, नवयुग का आगाज।।
साहब कांसीराम से, बहुजन की थी शान।
आंदोलन पहचान थी, चैन किया कुर्बान।।
छोड़ी अपनी नौकरी, त्याग दिया घर-बार।
बहुजन भी शासक बने, किया गजब उपकार।।
निकले कांसीराम जब, जागे सोये लोग।
उपचार किया आपने, भागा भय का रोग।।
जात-पात को तोड़कर, बहुजन बने जमात।
सारे बहुजन जुड़ गए, की सत्ता की बात।।
दौलत का लालच नहीं, प्रणय का नहीं चाह।
साहब कांसीराम की, आंदोलन की राह।।
”सिल्ला” भी है लिख रहा, तेरे सारे काज।
साहब की मेहनत से, बहुजन के सिर ताज।।
-विनोद सिल्ला