सास बहू
**मनहरण घनाक्षरी**
***** सास-बहू ****
*****************
बहु नहीं काम करो,
जरा तो आराम करो।
तुम भी तो इंसान हो,
निलय की शान हो।।
सास की ये मीठी गोली,
सुन कर बहु बोली।
हज़म न बात होती,
मधु क्यों जुबान है।।
थोड़ा पर्दा गिराना है,
रहस्य को छिपाना है।
आने वाला मायका हैं,
घर का सम्मान है।।
बहु ने आँखें दिखाई,
तनिक न शरमाई।
वक्त यही अनमोल,
न्याय का मैदान है।।
*******************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)