सासू मां!!
सासू मां,
हां है तो मां,
पर कोई समझे ना,
स्वीकारने का संकट है,
बस यही तो झंझट है!
सास तो,
पति-पत्नी दोनों की होती है,
बस इनकी सोच,
थोड़ी सी अलग-अलग होती है!
दामाद से कभी कभी भेंट होती है,
बहूओं के संग हर दिन मुलाकात रहती है,
खूब मेहमान नवाजी पाता है दामाद,
बहूओं को होना पड़ता है उपेक्षा का शिकार!
दामाद से अपेक्षा रखती है सासू मां,
तुम उसका ख्याल रखना,
वह नादान है,
भोली भाली है,
है अनजान,
नहीं जानती दुनिया दारी,
उस पर बोझ न पड़े भारी!
बहूओं से रहती है अपेक्षा,
वह परिवार में न करे किसी की उपेक्षा,
सबको आदर भाव देना है,
सबके काम काज में हाथ बंटाना है,
किसी भी तरह की तुनकमिजाजी,
स्वीकार नहीं,
थोड़ी सी भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं,
कोई तर्क वितर्क नहीं कर सकते,
नहीं कुछ भी कह सकते!
गर कुछ कह दिया,
तो फिर,
कोई नाम धर दिया जाएगा,
कलमुही,-कूलटा, कूलक्षणा,संस्कार हीन,
कुछ भी कह दिया जाएगा!
निकाली जाती है मीन मेख,
सुन सुन कर कान पक जाते हैं जब,
चुप्पी साधे रहती फिर भी तब,
लेकिन मां बाप पर बात आ जाए,
बहू-बेटी बनकर आग बबूला हो जाए,
रण चण्डी बन कर है कहती ,
सब कुछ सह सकती हूं,
लेकिन मां बाप का अपमान नहीं सह सकती!
बेटे को जब यह बताया जाता है,
खूब उसे भड़काया जाता है,
सुधारने को कहा जाता है,
अपने पुराने अनुभवों को सुनाया जाता है,
एक से एक तदवीर बताई जाती है,
बेटे के स्वाभिमान की खिल्ली उड़ाई जाती है,
मकसद सिर्फ यह रहता है,
बेटे को अपने पक्ष में करना होता है!
अब बेटे पर निर्भर करता है,
वह किसका पक्ष धर बनता है,
या फिर वह तटस्थता अपनाता है,
पर हर हाल में उसे ही सुनाया जाता है,
बेटे-दामाद भी क्या करें,
मां या सासू मां का ख्याल रखें,
या पत्नी का ध्यान धरें!
बहुत संतुलन बनाना पड़ता है,
कभी मां को,
तो कभी पत्नी को,
कडा रुख अपनाना पड़ता है,
फिर भी यदि बात न बने,
तब वे बेचारे क्या करें,
दो पाटों के बीच में पीसता महसूस करें!
घर पर मां की आपबीती कथा सुनें,
या पत्नी की व्यथा कथा सुनें,
घर पर मां के ताने सुने,
या सासू मां के अफसाने सुनें,
बहुत धैर्य दिखाते रहते हैं,
फिर भी मुस्कराते रहते हैं!
यदि यही काम बहूएं कर लें,
अपने जज्बातों को काबू में कर लें,
तो शायद कुछ बात बन सकती है,
सोचें समझें इसी में अपना हित है,
परिवार का भी हित इसमें ही निहित है!
हां माना सास को भी,
थोड़ा सा संयम रखना चाहिए,
बार बार टोका टोकी से बचना चाहिए,
छोटी छोटी बातों पर,
हर बार जिम्मेदारी का एहसास कराना ठीक नहीं,
मायके के ताने सुनाना ठीक नहीं!
सारे रिश्ते नाते छोड़ कर,
बहू बनकर आई है,
अपना सबकुछ छोड़कर आई है,
सुखद सपने संजोए आई है,
पति परमेश्वर के लिए तो आई है!
बाकी के रिश्ते भी निभाए जाएंगे,
हर कार्य समय पर निपटाए जाएंगे,
बस इनकी इतनी सी अपेक्षा रहती है,
सासू मां, मां बन कर क्यों नहीं कहती है,
हर बार सास होने का दंभ भरना,
खलने लगता है यह उपालंभ करना,
ठीक नहीं है यह आलम,
नहीं रह पाती शांति कायम!
सोचो अगर सासू मां,
मां बन कर बुलाए,
तो जन्म धात्री मां,
कब-किसे-क्यों,
याद आए,
मां और सासू मां,
तब एकाकार हो जाएं!!