सावन
आज
सावन की पहली बारिश ने
धरा को छुआ
दूर कहीं सुप्त अंकुर
फिर रोमांचित हुआ
हुआ स्पंदित
फूटे अंकुर
धारा के विपरीत
ऊर्ध्व मुखी गगन की ओर
सुकुमार शैशव से फिर
हुआ छतनाग वृक्ष
राहगीरों का आश्रय
जीवन हुआ सार्थक उसका
यूं सावन के आने से
पंछियों का बना बसेरा
शाखाओं पर घरौंदा, बना दी
एक पूरी की पूरी बस्ती
आज सावन की पहली बारिश ने
सृजित कर दी एक नई उमंगों
और आशाओं की
नई नवेली दुनिया
एक नई नवेली बस्ती।