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1 Aug 2023 · 1 min read

सावन

काहे बाबुल ब्याहे तुमने हमको तो परदेश
आ ना पाऊँ तुमसे मिलने मैं तो अपने देश

सावन की जब गिरें फुहारें
याद आती घर की दीवारें
मैया,भैया ,सखी सहेली,
खेल खिलोने हंसी ठठोली
रह गई बस अब इनकी, स्मृति ही शेष।
काहे ब्याहे परदेश ओ बाबुल
काहे ब्याहे परदेश

याद आए घर का हर कोना,
माँ की डाँट पर छुपकर रोना।
बाबुल का वो प्यार से कहना,
बिटिया तू इस घर का गहना।
एक दिन में हुई पराई,तेरी वो प्रियेश।
काहे ब्याहे परदेश।ओ बाबुल
काहे ब्याहे परदेश।

आजा अब तो आया सावन,
कह रहा घर का वो आँगन।
बाँट निहारे बहन तिहारी,
अब तक ना आए गिरधारी।
नयना भी अब सुख़न लागे,ना रह गया श्लेष।
काहे ब्याहे परदेश।ओ बाबुल
काहे ब्याहे परदेश।

माँ बिना मायेका सुना,
खुश हूँ पर,फिर भी खुश हूँ ना।
जिस देहरी पर बचपन बीता,
हाथ मेरा आज ,है वहाँ रीता।
हाथ बढ़ाके बाबुल,भैया,देना प्रेम अशेष।
काहे ब्याहे परदेश।ओ बाबुल
काहे ब्याहे परदेश।
ओ बाबुल काहे ब्याहे परदेश

Language: Hindi
130 Views
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