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10 Jun 2023 · 1 min read

सावन

बरसता है ये सावन जब, तो कोई याद आता है
निगाहों से उतर कोई, मेरे दिल में समाता है,
ये भीगी शाम की पलकों में सजते अनगिनत सपने,
कोई हौले से छूकर बंद पलकें खोल जाता है।

ये छमछम करती बूंदें जब गिरे मेरे कपोलों पर
घटाओं का ये कोलाहल हो अपने पूरे यौवन पर
ये खनखन चूड़ियों की पूछती ऐ री सखी अब सुन
वो साजन कौन है बनके घटा तुझको रुलाता है

वही रस्ते,वही मंजर,वही महकी फिज़ाएं हैं
मचलती बिजलियां है जो,वो मेरे साजन की अदाएं हैं,
ये सीली-सीली पुरवाई मेरे कानों में कहती है,
तेरे साजन औ सावन का, कई सदियों का नाता है

सखी री सुन मेरे साजन से मेरी आरज़ू कह दे,
सज़ा कोई मुकर्रर हो,वफा इतनी सी वो कर दें,
कि उनके सामने मेरी नजर ऊँची नहीं होती,
अगर नज़रें इनायत हों तो ,करार इस दिल को आता है

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