सावन में साजन को संदेश
धरती है श्रृंगार सजाएं
ऋतु सावन बहार में
मैं भी प्यासी, तड़प रही हूं
साजन तेरे प्यार में
मंद मंद ए, पुरवा हवाएं
छूकर दर्द बढाती है
रिम झीम मेघ, बरसकर मेरे
तारुण्य में आग लगाती है
शीथिल वेदना, अश्रु अम्बक में
चांदनी रात चिढ़ाती है
भोर भोर में, कोयल काली
व्यंगात्मक गीत सुनाती है
ताल सरोवर, पन घट कहते
तू तो अभी अधूरी हो
तेरा सजना रूठ गया है
लागे तू तीखी छुरी हो
क्या मेरे कुछ तीव्र व्यंग से
उर अंतर में चोट रही
हे प्रियवर क्या मेरी
तपस्या में कोई खोट रही
परमेश्वर परमार्थ निकेतन
भूल क्षमा तो कर देना
मेरे अपराधों की वाणी
प्रियतम मेरे हर लेना
दामिनी दमक चमक कर मेरे
वेदना के तरंग उठाती है
रजनी में कोमल, सजी सेज भी
नागिन सा डस जाती है
सप्त ऋषि हे सोम सितारे
संदेश पिया को दे देना
पुष्पों की सुकुमारी दुल्हन
प्राणों को यू ना हर लेना
प्रतीक्षा वह हर घड़ी करती
पथ पर नैन लगाती हैं
बिखरे केस नैन से उसके
काजल भी बह जाती है
सावन के इस ऋतु पावन में
प्रियवर गृह को आ जाओ
सुखी बगिया के आंगन में
कोमल पुष्प खिला जाओ