सावन महिना
सावन महिना
सावन महिना भोंभरा तिपत हे
बरषा कहां नंदागे
अब आके बचाले अवघड़ दानी
मोर मति छरियागे
चारों कोती हावय गरमी अड़बड़
कुहक हावय भारी
तरबतर पसीना में होवत हावय
धरती के नर नारी
रोवत हावय सब रूख राई अऊ,
भाप बनत हे सब पानी
घिंदोल मेचका अब मुंह फारत हे
सुरता आवत हे नानी
अब आके बचाले भोले बाबा
तोला कईथन अवघड़दानी
सावन महिना भोंभरा तिपत हे
का होंगे,गिरत नइये पानी।।
पान सुपारी अब तोला चढाबों
नरियर फाटा ,बेलपतिया
धोवा धोवा चाऊंर ल चढाबों
जल चढाबों, महानदीया
कब आबे तेला बतादे,नंदी ल संग लाबे
गौरी माता पारवती ल, संगे म धर आबे
सावन सम्मारी एसो, अठदिनिया,होवत हे
लम्बोदर घलो ल , परिवार सहित तै आबे
विनित
कवि डां विजय कुमार कन्नौजे
अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग