सावन मंजूषा
घिर आए बादल जो घनेरे
प्रेम के थे कुशल चितेरे
रिमझिम रिमझिम नेह समेटे
जलहरी से रस टपकाते
प्रीतम का संदेश सुनाते
पल पल उनकी याद दिलाते
भीगे भीगे इस मौसम में
बार बार मन पर छा जाते
चलते चलते आंचल लहरे
बरसे बूंदें तन मन बहके
महके महके इस सावन में
बार बार वो याद आ जाते
सिहरे मन में दंश चुभोते
तड़पे हिय का हाल सुनाते
फिर भी , हृदय उमगाते
इस मतवारे मौसम के नजारे
चहके चहके इस मौसम में
जल कलरव से मन बहलाते
छलके छलके अमृत घट से
प्राणतृषा को तृप्त कर जाते
गीतों की सलिला बहाते
अदभुत है सावन के नजारे
बहते बहते इस मौसम में
बार बार वो याद आ जाते।