सावन – भादो
तुम नाचते हो सावन भादो का नाम सुन कर
जिस्म से चश्म तक मेरी सब धुलने लगती है
करूं भला मैं किस दरवेस से तब शिकवा
नेमत-ए-ज़ीस्त भी जब पिघलने लगती है
मैं चाहता तो नहीं कि अपने हाल पे रोऊं
सिसकियों से मगर दम मेरी घुटने लगती है
चश्म = आँख
दरवेश = फ़कीर
नेमत-ए-ज़ीस्त = जिंदगी का तोहफ़ा
~ सिद्धार्