सावन बीत गया
सखी बीत गया मधुमास
न जागा कोई अहसास
कि सावन रीत गया…
कि सावन बीत गया
परछाई जो साथ चली
अंगड़ाई जो साथ ढली
अब बस मीठी यादें हैं
तेरी मेरी बातें हैं।।
कि सावन बीत गया…
खोया क्या पाया हमने
बोया क्या काटा हमने
अवसानों की बस्ती है
उम्र इतनी ही सस्ती है
कि सावन बीत गया…
पहर पहर सब पहरे हैं
बुरी नज़र के चेहरे हैं
क्या जाने सावन फितरत
ऋतु कुँआरी, ये उल्फत।।
कि सावन बीत गया…
उस डोली की बात सुनो
उस भोली की रात गिनो
घायल चंदा छत पर था
झूला फंदा रुत पर था।।
कि सावन बीत गया…
बिजली, बादल अमुआ रे
बीत गये सब बबुआ रे
मन की कैसी रिमझिम है
खुल खुल जा सिमसिम है
कि सावन बीत गया…।।
सूर्यकान्त द्विवेदी