सावन बीता, आस न बीती…
सावन बीता,
आस न बीती।
ढुलक पलक से,
बदली रीती।
हद से प्यारा,
मीत हमारा।
बातें उसकी,
थीं मनचीती।
बैठी उन्मना,
भोली जोगन।
फटे बसन ले,
कथरी सीती।
प्रेम – पंथ -पग,
रखा सँभलकर.
हारी फिर भी,
कभी न जीती।
होश न अपना,
सुध न तन की।
बंजर आस ले,
मर – मर जीती।
दुखिया तन है,
प्यासा मन है।
गम खा लेती,
आँसू पीती।
तन की मन से,
मन की तन से।
होती हरदम,
तुक्काफजीती।
– © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
“मनके मेरे मन के” से