सावन आया झूमकर
मदिरा सवैया में रचित
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सावन में मन डोल रहा, अब बूँद पड़े महके अंगना।
लाल कपोल हुए मुख पे, अब पायल चाह रही बजना।
भींग रहा तन आज पिया,मन चाह रहा फिर भी भींगना।
छेड़ रही सखियाँ हमको, तन मांग रहा सुर पे नचना।।
बागन में अब कोयल बोल,लगे अमवा रमते अँगना।
ताल तड़ाग भरे उछले, सरके जइसे मनवा सजना।
यौवन झूम रहा खिलके, अब सावन झूम रहा गगना।
कामद भी अब नाच रहा, सखियाँ संग देख भरे अंगना।
झूम रहे मन मानस देख, हवा नित का सुरभी बहना।
झूम रहे तरु आपस में, बजे जस हाथन का कंगना।
झूम रही रति झूलन पे, दमके तन प्रीतम का लहंगा।
सोच सभी रहते कहते, अइसे सावन झमके अंगना।।
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अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ,.प्र.
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