सावन की रुत आ गई, छाने लगी बहार
सावन की रुत आ गई, छाने लगी बहार
भावों में बहने लगी, प्रीत भरी रसधार
कली फूल को चूमकर, भँवरे गाते गान
रंगबिरंगी तितलियाँ, फेंक रही मुस्कान
कूक कोकिला की रही, मन में मिश्री घोल
मस्त नाचता मोर है, रहा पपीहा बोल
पवन सुगंधित दे रही, सपनों को आकार
सावन की रुत आ गई,छाने लगी बहार
लगता सूनापन बहुत,पिया गये परदेश
उनके आने में अभी, बचे बहुत दिन शेष
बातें होती फोन पर, मन फिर भी बेचैन
कटते उनको याद कर, दिन हो चाहें रैन
और लगाती आग है,ये रिमझिम बौछार
सावन की रुत आ गई, छाने लगी बहार
04-07-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद