सावन की ये मस्त बहारें
सावन की ये मस्त बहारें
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छम छम नाच रहीं हैं बूँदें
गातीं सरगम कानों में।
मचल रहा है दिल उल्फ़त का
कोयल कुँहके बागों में ।
कोलाहल करती है दामिन
मन को दहला जाती है ।
पवन हिलोरें लेती आये
गीत सुरीले गाती है।
नन्हीं-नन्हीं बुंदियाँ देखो
मस्तक मेरा चूम रहीं।
थाम कलाई शाखाएँ सब
मस्त मगन हो झूम रहीं।
पातों के संग करें ठिठोली
झूला खूब झुलाती हैं।
सावन की ये मस्त बहारें
मुझको पास बुलाती हैं।
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’