सावन की फुहारें
सावन की
रिमझिम फुहारें
स्याम मेघों से
ढका अम्बर
हरियाली
बसुधा का
श्रंगयौवन
बारि बूंदों की
सरसराहट
श्रंगारी धुन के साथ
उनकी यादें
मानस मे
विरह गीत गाकर
नृत्य कर
कुकृत्य कर
पथभ्रष्ट कर रही हैं|
कभी मन्द
कभी तीब्र
गति से
पूरवा पवन के
मदमस्त झोंके
गुलाब के
गुलाबी अंगों का
आलिंगन कर
गेह की अधखुली
खिड़कियों से
असमय
प्रबेश कर
अपरिमित सुगन्ध के साथ
मेरी काया से
टकराकर
सता रहे हैं
नेह का
अपरिमेय स्नेह
आज भी
पल-पल पल रहा है
बता रहे हैं|
रचयिता
रमेश त्रिवेदी
कवि एवं कहानीकार
नरदी, पसगवां, लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश