“सावन की अद्भुत छटा”
सावन तेरी अद्भुत छटा,
देख, मन हर्षे,
घन गरजे, बिजली तड़के,
भू तल, शून्य प्रति ध्वनि गूंजे।
प्यास धरती की बुझाती,
रिमझिम सावन बरसे,
काली-काली,घोर घटाएं,
बूंद बन आंगन में टपके,
रुक-रुक, ठहर-ठहर,
तेज-तेज, कभी मंद-मंद,
चहुं ओर मेघ छाये,
पर्वत सा नभ में बिखरे।
गर्म, प्रचण्ड, धूप में झुलसते,
पौधों में हरियाली कर दे,
पांव चूमते वसुंधरा का,
डालियां, मस्त झूमें-गाएं,
तीव्र बयार, उड़ती फुहारें,
झूमते पौधों के रूप अनोखे,
दर्पण सा वें दाग दृश्य,
देख मेरा मन बहके।
शीतल तन करती समी रण,
बहती धारा नदियां बनकर,
सरल-सरल,कभी तेज हवाएं,
धरती पर चादर बनकर,
देख, ऋतु की प्राकृतिक आभा,
मन में उमंग सा छाएं,
मनोहारी,घनघोर घटाएं,
चित्त अमृत बरसाएं ।।
~वर्षा(एक काव्य संग्रह)/राकेश चौरसिया
9120639958