सावन और बचपन
घनन-घनन गरज रहे हैं पियक्कड़ मेघा
अंगड़ाई लेकर मतवाला सावन झूम रहा
घूंघट हटाके झाँक रही हैं काली घटायें
उल्लसित बचपन बादलों को चूम रहा
उतावली बारिश की थिरकती स्वेत बूँदें
कागज की नाव और बरसात का पानी
यार बचपन हो सके तो लौटादे वह दिन
बूंदों पर चढ़कर छू लेंगे नभ असमानी
रिमझिम मोती जब बिखेरता था बादल
थिरकते थे धरती के आँगन में बुलबुले
मेरे छूने से पहले ही हवा संग उड़ जाते
सावन में बचपन के पल कितने चुलबुले