सावधान हो जा मतदाता अब परधानी आवत बा
सब प्रत्याशी के पैर में चक्र, कुछ याद दियावत बा।
सावधान हो जा मतदाता अब परधानी आवत बा।
केहू के अईले से कुटुम्ब प्रसन्न ,केहू फूटी आंख न भावत बा।
सावधान हो जा मतदाता अब परधानी आवत बा।
प्रत्याशी अपने के गणितज्ञ समझलें, पर सारा गणित फेल भइल बा।
वोटर के वोट यक्षप्रश्न बन गईल बा, न जाने कौना खेल भइल बा।
मतदाता उहे सुनावत बा जवन प्रत्याशी के भावत बा।
सावधान हो जा मतदाता अब परधानी आवत बा।
पांच साल हमके तू चरैबा एहि चुनावे में अब चराइब हम।
चकरा के गिरी पड़वा जब अपनत्व भाव देखाइब हम।
का जानत बाटा पीटर भैया होह प्रत्याशी के दावत बा।
सावधान हो जा मतदाता अब परधानी आवत बा।
कुछ मतदाता ‘जवन हाथ उहे साथ’ के नियम पे बाटें।
बोकर ,लिट्टी, सोमरस औ मुर्गाधन अधिनियम पे बाटें।
कुछ कुहण अइसन महान जे खाके भी गरियावत बा।
सावधान हो जा प्रधान अब परधानी आवत बा।
सावधान हो जा मतदाता अब परधानी आवत बा।
प्रत्याशी के कई पीढ़ी के व्यवहार काम और सारा खानदान आई।
सबके चरित्र और काम के परीक्षण होइ जब गाँव के मतदान आई।
हमार बाप दादा कुछ कहले त न रहले, बस इहे डर सतावत बा।
सावधान हो जा प्रधान अब परधानी आवत बा।
-सिद्धार्थ पांडेय