साल नये खुशियां लाओ
बड़ा रंगीन रहा ये- साल,
हर शै ने दिखाए कमाल।
जिंदगी से खुद हो रुबरू,
संभले – जब हुए बेहाल।
शामे गम वस्ल की रात,
मिले जो समझो निहाल।
गुलशन होते गये बियांबा,
पतझड़ रो-रो हुई निढाल।
साल नये खुशियां लाओ,
जनजीवन बने खुशहाल।
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर