सारे कुत्ते चुप
सुबह – सवेरे शहर के एक तिराहे पर ,
चार – छह मरघिल्ले से कुत्ते ,
भौंक – भौंक कर एक दूसरे से झपट रहे थे ।
कमजोर होने के बावजूद ,
एक दूजे को दपट रहे थे ।
अपने साथियों की आवाज सुन ,
इधर-उधर से और दो – तीन कुत्ते ,
लपकते हुए चले आए ,
वे भी बिना जाने सुने ,
एक दूसरे पर भौंके , गुर्राए , चिल्लाए ,
इतने सारे कुत्तों की आवाज सुन ,
दूर से एक बुजुर्ग – सा कुत्ता दौड़ा चला आया ,
आते ही जोर से भौंका ,दपटा ,
बोला – ये क्या कर रहे हो ।
एक दूसरे से क्यों लड़ मर रहे हो ।
क्या किसी ने किसी की
जमीन जायदाद हड़प ली है ।
किसी का उधार डकार लिया है ,
या किसी का हक मार लिया है ।
क्या किसी ने किसी का वरण कर लिया है
या किसी ने किसी का ,
बलपूर्वक हरण कर लिया है ।
तुम कुत्ते हो और तुम्हारी आवश्यकता
मात्र पेट भरने तक ही सीमित है ।
मैंने ऐसा सुना है
जब इन्सान एक दूसरे से लड़ते हैं
तो कोई आकर उनसे
कहता , समझाता है
कि तुम कुत्तों की तरह क्यों लड़ रहे हो ।
अरे फिर तुम ,
इन्सानों की तरह क्यों लड़ रहे हो ?
अपने आप को ,
लज्जित क्यों कर रहे हो ?
अब कोई किसी से लड़ो मत ,
और बिलकुल चुप हो जाओ ।
सारे कुत्तों ने
बुजुर्ग कुत्ते की बात सुनी ,
और फिर
सारे कुत्ते चुप ।
अशोक सोनी ।