सारा शहर अजनबी हो गया
सारा शहर फिर अजनबी सा हो गया।
जब से वो एक शख्स भीड़ में खो गया।
ढूंढ़ते रहे हम उसे थे शहर की गली गली
हमने मगर शहर की धूल मुख पर मिली।
जाने कब वो बन गया वो मेरी कायनात
ग़म ऐ हिज़्र की दे गया वो मुझे सौगात।
बहुत अजीब होते हैं इश्क कें वो मरहले।
जब कोई दिल किसी की धड़कन में पले।
जाते हुये वो शख्स मुझको तन्हा कर गया।
राह देख रहे हैं,वो बेमुरव्वत हाय किधर गया ।
सुरिंदर कौर