सारस छंद
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सारस छंद – मापनीयुक्त मात्रिक- 24 मात्रा ।
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गूँज रही है शहनाई अब तो तू सुन ले ।
प्रेम हृदय में महके रे! कुछ सपने बुन ले ।।
जीवन वो जो चल कर हँस कर बीता करता .।
जो डर जाता चलने से वह जिन्दा मरता ।।
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भोग किये हैं जितने सोच जरा क्या कम हैं ?
याद न आई हरि की नैन हुए क्यों नम हैं ?
जीवन बीता पर तू रोक न पाया मन को ।
संचय कर ले अब तो रे मन! सच्चे धन को ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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