सायली छंद
पता
नहीं क्यो?
यादों के पन्ने
आज फिर
फड़फड़ाते।
मोह
के धागे
तेरी उँगलियों में,
जा उलझे
क्यों?
संभली
तुफानो से
समंदर में फँसकर
हिदायतें लिख
दी।
सहेजती
अश्रु अँखियाँ,
मिलन आस लिए
सपने समेटे
बैठी।
नीलम शर्मा ✍️
पता
नहीं क्यो?
यादों के पन्ने
आज फिर
फड़फड़ाते।
मोह
के धागे
तेरी उँगलियों में,
जा उलझे
क्यों?
संभली
तुफानो से
समंदर में फँसकर
हिदायतें लिख
दी।
सहेजती
अश्रु अँखियाँ,
मिलन आस लिए
सपने समेटे
बैठी।
नीलम शर्मा ✍️