साम – दाम – दण्ड – भेद
अन्याय जब हद से बढ़ जाये
तब न्याय से खेलो
कृष्ण को ध्यान में रख कर
दिमाग से खेलो ,
साम – दाम – दण्ड – भेद
साम – दाम – दण्ड – भेद ,
अन्याय छल के सहारे
सौ बार जीतता है
झूठ अंधेरे में
खुश होता रहता है ,
न्याय बार – बार हर बार
चुपचाप सहता है
बस एक बार सर उठाता है
फिर कभी नही झुकाता है ,
अन्याय……
चतुर भी है
कुटिल भी है
निम्न भी है
तुक्ष भी है ,
न्याय……
सीधा है
पर मुर्ख नही
सरल है
पर क्लिष्ट नही !!!
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 08/04/18 )