सामूहिक मानसिकता
वर्तमान के डिजिटल माध्यम के दौर में सामूहिक संपर्क साधनों इंटरनेट , मोबाइल एवं संपर्क टीवी द्वारा सामाजिक मंचों फेसबुक , व्हाट्सएप , यूट्यूब , इंस्टाग्राम , लिंकडइन , कोरा, ब्लॉग इत्यादि के विकास से , इनके द्वारा किसी भी सूचना अथवा विचार को तुरंत सेकंडों में एक दूसरे से साझा किया जा सकता है।
किसी जानकारी अथवा विचार को एक दूसरे तक पहुंचाने एवं परस्पर साझा करने का यह एक सरल , शीघ्र एवं उत्तम साधन है।
परंतु इन सोशल मीडिया मंचों पर स्वस्थ विचारों के आदान प्रदान करने के स्थान पर सामूहिक मानसिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है।
विचारों की स्वस्थ समीक्षा , विवेचना , विश्लेषण एवं टिप्पणी के स्थान पर नकारात्मक भावना से युक्त टिप्पणी कर विचारों को दबाने का प्रयास किया जाता है ।
जिसमें एक विशेष मंतव्य युक्त सामूहिक सोच का विकास करना एक प्रमुख लक्ष्य बनकर रह गया है। जिसके चलते प्रज्ञाशील व्यक्तिगत सोच का अभाव हो गया है।
विचारों एवं तथ्यों को तर्कों के आधार पर परखने के बजाय एक समूह विशेष की स्वार्थ पूर्ति हेतु तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करना एक आम बात हो गई है।
इस प्रकार ये मंच सकारात्मक सामूहिक चिंतन हेतु स्वस्थ विचारों के आदान-प्रदान कर सामूहिक कल्याणकारी सोच का निर्माण करने के स्थान पर नकारात्मक मंतव्य युक्त सामूहिक सोच का निर्माण करने वाले मंच बन कर रह गए हैं।
इन मंचों के माध्यम से किसी व्यक्ति विशेष के चरित्र हनन हेतु नकारात्मक भावना युक्त सामूहिक सोच का निर्माण करने का प्रयास किया जाता है।
राजनीति से प्रेरित भड़काऊ व्यक्तव्य दिए जाते हैं , तथा घटनाओं एवं इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाता है।
जनसाधारण में भय एवं आतंक का माहौल बनाने एवं देश में राजनैतिक अस्थिरता फैलाने का प्रयास किया जाता है।
ये मंच आजकल विज्ञापन एवं व्यक्तिगत उद्देश्य पूर्ति हेतु विशिष्ट व्यक्ति वंचना मंच बन गए हैं।
सामूहिक सोच का निर्माण करने के लिए इन मंचों का जोर शोर से उपयोग किया जा रहा है।
जिसके फलस्वरूप जनसाधारण में व्यक्तिगत सोच का निर्माण बाधित हो रहा है।
इस प्रकार सामूहिक सोच वर्तमान में व्यक्तिगत सोच पर भारी पड़ रही है ; यदि कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
सामूहिक सोच हर क्षेत्र में अपने पैर पसार रही है ,
जिसके कारण विभिन्न क्षेत्रों में व्यक्तिगत सोच का अभाव महसूस किया जा रहा है।
अतः एक प्रकार से तथाकथित सामूहिक सोच व्यक्तिगत सोच के निर्माण में बाधक सिद्ध हो रही है।
सामाजिक व्यवस्था में कल्याणकारी सकारात्मक सोच के लिए व्यक्तिगत प्रज्ञाशक्ति से परिपूर्ण सोच का होना आवश्यक है , जिससे तर्क सम्मत सामूहिक निर्णय के लिए वातावरण बनाया जा सके।
अतः यह आवश्यक है जनता में जागरूकता पैदा कर सामूहिक सोच के बहाव में ना बहकर , व्यक्तिगत तर्कसंगत सोच के निर्माण के प्रयास करने होंगे। जिससे इन मंचों पर सकारात्मक विचारों के आदान प्रदान , चिंतन एवं विश्लेषण से सर्व सम्मत जनकल्याणकारी सामूहिक निर्णय लिए जा सकें।