सामाजिक रिवाज
नमस्कार को टाटा खाया,
नूडल को खाया आटा।
अंग्रेजी के चक्कर में,
हुआ बहुत ही घाटा।
माता को मैम खा गया,
पिता को खाया डैड ।
दादाजी को ग्रैंडफादर खा गया,
सोचो कितना बैड।
गुरुकुल को स्कूल खा गया,
गुरु को खाया चेला ।
सरस्वती की प्रतिमा पर
उल्लू मारे ढेला।
चौपालों को बियर बार खा गया,
रिश्तों को खाया टी.वी.।
देख सीरियल बेड पर बैठ,
बक-बक करती बीबी।
रसगुल्ले को केक खा गया,
और दूध पी गया अंडा।
दातून को टूथपेस्ट खा गया,
छाछ पी गया ठंडा ।
धोती को जींस पैंट खा गया,
कुर्ता को खा गया शर्ट,
चमड़े के जूते चप्पल को,
स्लीपर और शूज स्पोर्ट।
चावल, चटनी और अचार को,
डोसा, इडली खा गया।
बड़े चाव से रेस्टोरेंट में ,
बाटी चोखा छा गया।
परंपरा को कल्चर खा गया,
हिंदी को अंग्रेजी।
दूध-दही के बदले,
चाय पी कर बने हम लेजी ।
हाय रे कैसी परंपरा आई,
रिवाज का ऐसा मजाक हुआ।
सामाजिक कुरीतियों का,
अब ऐसा विकास हुआ।
अनिल “आदर्श”
रोहतास, बिहार
वाराणसी, काशी