सामाजिक कविता: बर्फ पिघलती है तो पिघल जाने दो,
सामाजिक कविता: बर्फ पिघलती है तो पिघल जाने दो।
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बर्फ पिघलती है तो पिघल जाने दो,
बस पानी ही तो है,
बातें बनती हैं तो बन जाने दो,
दुनियां एक कहानी तो है।
अंधेरों से घबराने की जरूरत नहीं,
कभी उजाला भी होगा,
कुछ लुटा है तो लुट जाने दो,
सब्र रखो अभी बाकी ज़िंदगानी तो है।
बर्फ पिघलती है………..
जब फेर ले देखकर मुँह कोई,
समझना पहचान पुरानी तो है,
भले बदल गयी नफरत में मोहब्बत,
पर कुछ निशानी तो है।
जो तेरा ना था तुझे ना मिला,
फिर फिक्र कैसी करी,
हो जाएगी फिर से मोहब्बत,
अभी दिल में जवानी तो है।।
बर्फ पिघलती है…………
इमारत कितनी भी जर्जर हो यादों की,
पर सजानी तो है,
आग जो जली है इच्छाओं की लकड़ी से,
कभी बुझानी तो है।
मोहब्बत करनी है तो रब से करो,
जो कभी बेवफा नहीं होता,
गवांदे अहंकार की दौलत को आज ही,
कल भी गंवानी ही तो है।।
बर्फ पिघलती है………….
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स्वरचित कविता 📝
✍️रचनाकार:
राजेश कुमार अर्जुन