सामाजिक कविता: पाना क्या?
सामाजिक कविता: पाना क्या?
************************
~~~~ ||| ~~~~
जो पाकर खो जाए, उसका पाना क्या?
जहां जाकर लौटना हो, वहाँ जाना क्या?
जलती है तो जलने दे, आग ही तो है,
हो रहा है उजाला, तो बुझाना क्या?
~~~~ ||| ~~~~
जिस चेहरे से मिलती है खुशी, तुम्हे भी,
उस बालक को फिर, रुलाना क्या?
समझ जाएंगे लोग, तेरे हालात देखकर,
फिर लोगो को कुछ, बताना क्या?
हो गयी है तो हो जाने दे, मोहब्बत ही तो है,
नादान दिल को समझाना क्या?
~~~~ ||| ~~~~
पंछी जो आकर, तुझे गुंजन सुनाए,
उन परिंदो को घर से, उड़ाना क्या?
जब खुदा- रब- प्रभु तेरे अंदर ही बसे हैं,
फिर मंदिर- मस्जिद जाना क्या?
मिल ही जायेगा जिस काबिल होंगे हम,
फिर बार- बार हाथ फैलाना क्या?
~~~~ ||| ~~~~
अगर ख्वाहिश है बुलाने की तो बुला ही लो,
पर जो रुक ना सके, उसे बुलाना क्या?
जिसे आदत हो, चाँद सितारे देखने की,
उसे थपकी देकर, सुलाना क्या?
अरे आती है तो आने दे, याद ही तो है,
जिसके बिना रहा न जाये, उसे भुलाना क्या?
****************📚*****************
स्वरचित कविता 📝
✍️रचनाकार:
राजेश कुमार अर्जुन