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8 Sep 2024 · 1 min read

#सामयिक_कविता:-

#सामयिक_कविता:-
■ मदमस्त कुम्भकर्णों के लिए
◆ जिन्हें कल की आहट नहीं आ रही आज
【प्रणय प्रभात】
खा लो पी लो, जग लो सो लो।
नाचो गाओ, हँस लो बोलो।।
अपनी-अपनी अकड़ दिखा लो।
झूठी-सच्ची पकड़ दिखा लो।।
निज को अलग धड़ों में बाँटो।
आकाओं के तलवे चाटो।।
लाँघो पशुता की सीमाएं।
सुनो अनसुनी करो व्यथाएं।।
मस्त रहो बस मद में फूलो।
भोगों के झूलों में झूलो।।
अधिकारों को छीन झपट लो।
मुख्य धार से चाहे कट लो।।
धर्म ध्वजा कोने में पटको।
अमृत त्याग गरल को गटको।।
गुब्बारों सा प्रति पल फूलो।
जियो आज में कल को भूलो।।
मत सोचो संकट आएगा।
जो होगा देखा जाएगा।।
नैया माँझी को खेना है।
तुमको क्या लेना-देना है।।
क्यों विचार के पापड़ बेलो?
तुम केवल लहरों से खेलो।।
मिट्टी में मिलते चंदन को।
घर से बाहर के क्रंदन को।।
आँख बंद हो कान बंद हो।
लौ दीपक की लाख मंद हो।।
घर में बैठ सुखों को फाँकों।
खिड़की से बाहर मत झाँको।।
उड़ जाएंगे होश तुम्हारे।
देख के बाहर के अँधियारे।।
आँख खुली सब दिख जाएगा।
विषम समय सच बतलाएगा।।
तब अपना अपराध खलेगा।
जब तुमको मालूम चलेगा।।
जो चौखट पर अड़ा खड़ा है।
अनचाहे सिर आन पड़ा है।।
उस अनिष्ट को भाँप रही हैं।
दसों दिशाएं काँप रही हैं।।
😢😢😢😢😢😢😢😢
(उन सुप्त जीवों के लिए उल्टी भाषा ही सही होती है जो सीधी बात समझने में भरोसा नहीं रखते)

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