#सामयिक ग़ज़ल
#सामयिक ग़ज़ल
■ हत्यारा ख़ुद माली निकला।।
【प्रणय प्रभात】
– एहसासों से ख़ाली निकला।
हर आँसू घड़ियाली निकला।।
– भरा-भराया सा दिखता था।
वो बादल जो ख़ाली निकला।।
– क़त्ल हुआ मासूम कली का।
हत्यारा ख़ुद माली निकला।।
– एक शब्द कल संबोधन था।
ग़ौर किया तो गाली निकला।।
– हाथ पसारा जिसके आगे।
वो ख़ुद एक सवाली निकला।।
– ये भी अपना वो भी अपना।
सारा खेल ख़याली निकला।।
– आया जाँच ठगी की करने।
वो अफ़सर ख़ुद जाली निकला।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
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