सामने सच के चुप राहाहूँ मैं
सामने सच के चुप रहा हूँ मै
झूठ के साथ पर लडा हूँ मै
मुस्कराहट भले हो चेहरे पर
रूह से पर कहीं बुझा हूँ मैं
जाएगा दूर किस तरह मुझ से
दिल में उसके बसा हुया हूँ मैं
तुमने लाँघा नही जिसे अब तक
तेरे दिल का वो दायरा हूं मै
जलजले आंधियां सभी हैं साथ
बद दुयाओं का कफिला हूँ मैं
जो कभी बेवफा नहीं होगा
मेरे हमदम वो वायदा हूँ मैं
एक कतरा न अश्क आँखों में
चूँकि पत्थर का ही बना हूँ मैं
चार पैसे अगर हों हाथों मे
सोचता वो के अब खुदा हूँ
जो ग़ज़ल को न रास है निर्मल
एक उलझा सा काफ़िया हूँ मैं