साऩेहा
लगता है क्यों हर शख़्स अपने ही ख्या़लों में ग़ुमसुम सा ख़ोया ख़ोया है।
शायद कल रात उसने कोई खौफ़नाक ख्वाब देखा है जिस की ताबीर जानकर अकेले में रोया है ।
ग़ुम है क्यों हर चेहरे से खुश़ियाँ।
छाई है क्यों ये माय़ूसियाँ ।
दोस्त भी अब कतरा कर निकल जाते हैं ।
कोई भी अब बात नहीं करता चुपचाप गुज़र जाते हैं। ऐसा क्या साऩेहा सा गुज़र गया है जो हर शख़्स को सा़लता है ।
जिसका ज़िक्र ज़ुबाँ पर ना आए इसे हर शख्स़ टालता है ।
इस प़समंजर में मैं ख़ुद को अकेला पाता हूँँ ।
और स़ुकुँ की तलाश में आगे बढ़ जाता हूँँ ।