साधन
सावन में साजन नहीं, नैन करे बरसात।
हरपल विरह वियोग में, कटते हैं दिन-रात।
साजन सुधि लेते नहीं, तड़प रहा मन मोर-
मिले नहीं संदेश कुछ, होती है ना बात।
सावन सुन निर्मोहिए , मत आना इस देश।
विरह अग्नि हूहू करे, दूर देश हृदयेश।
अश्रु उड़ा इस नैन से, ले जाना उस ओर-
बरसाना उस देश में, जहाँ बसें प्राणेश।
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’